थोड़ा मैं संवार लूँ
पीछे छोड़ फ़िक्र जमाने की आज
ख़ुद को थोड़ा मैं संवार लूँ
आईने से वफ़ा की कोई उम्मीद नहीं
बस ख़ुद ही अपने को निहार लूँ
उम्मीद की लौ
झुकी हुई हैं नज़रें आज इंतेज़ार में तेरे
डर हैं कहीं धड़कनें थम ना जाएँ
उम्मीद की लौ मगर बुझने नहीं देंगे
इंतेज़ार की घड़ियाँ शायद पल...
सिंदूरी टीका
माथे पर दमके सिंदूरी टीका
और अँख़ियों में फैल गया कजरा
हाथों में है पी तेरे नाम की मेहंदी
और बालों में सजा जूही का गजरा
धुन प्यार की
अभी छाया है जहाँ हर ओर सन्नाटा
महफ़िल मेरे घर में यार की फिर सजेगी
कुछ पल की ही हैं ये खामोशियाँ
फ़िज़ा में फिर धुन प्यार...
ज़िंदगी के रंग
बेरंग सी क्यूँ लगती है आज ज़िंदगी मुझे
सुकून ढूँढने चली हूँ ना जाने क्या वजह हैं
तनहाई का लेकर फ़ितूर आख़िर क्या होगा
ये जाना कि...